राही (नज़्म) प्रतियोगिता हेतु29-Apr-2024
राही (नज़्म)
मेरी राहें तू कांँटों से भरने लगा, ऐसा लगता है तू मुझे डरने लगा।
मैं राही नहीं कोई कमज़ोर हूंँ, काहें कमज़ोर तू मुझको करने लगा।
मैं टूटूँ तू ख़ुश होके देखे मुझे, अपने अंदर बहसीपन तू भरने लगा।
आंँधी- तूफ़ानों का है इक झोंका चला, मेरे अंदर जो डर था वो हरने लगा।
थोड़ा व्याकुल है मन पर न चिंता कोई, संग खु़शियों का मंजर भी झरने लगा।
अपनी पतवार को ख़ुद ही खे लूंँगी मैं, देख खेना मेरा क्यों तू जरने लगा।
कर्मयोगी हूंँ मैं भाग्य भोगी नहीं, मेरे हुंकार से अरि डरने लगा।
जीवन संघर्ष है ना तुम इससे डरो, रही राहों में फूल अब परने लगा।
राहों में राही संँभल कर चलो, कंटकों से ही जीवन है खरने लगा।
साधना शाही, वाराणसी
Babita patel
30-Apr-2024 11:46 PM
Very nice
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Gunjan Kamal
30-Apr-2024 07:53 AM
बहुत खूब
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